हक़ीकत और सपने
हक़ीकत और सपनो
मे फ़र्क है
कितना
तेरे कहने,करने
और जज़्बे मे
दम है जितना
कह कर गुज़र
गयी हवा भी
सूखी मिट्टी से
मैं उड़ा दूं
जहाँ तक तेरा
सफ़र है उतना
तूफान भी हिला
ना पाए जिसे
दृढ़ रख हौसला
उस चट्टान सा
नाराज़गी या कुछ और
अजीब हैं हम तो शायद कम तो आप भी नही
एक दूसरे की समझ की किताब मे एक से पन्ने पर भी हम नही
अच्छे वक़्ता हम नही और बाकी समझ सके आप भी नही
कभी लगा की दूरियों का असर है कभी लगा की हमारी बेवकुफ़ियों का सफ़र
है
पर जब आप बोल गये कुछ यूँ तो जाना ये तो अलग ही मंज़र है
सफ़र जिसमे आप शायद हमसफ़र बने नही
और हम अपनी नाराज़गी ज़ाया करते रहे यूँही
अब वक़्त पर और आप पर छोड़ते हम भी
जितना था बोलना बोल चुके अपने बारे मे लिख चुके लंबे खत भी
अब आपके सवालों और आपकी दिलचस्पी का इंतेज़ार रहेगा
अब आपके उपर ही इस सफ़र को बढ़ाने का दारोमदार रहेगा
साथ हम तो दिखेंगे हर बार ही पर अब से हर कदम पहले आपका बढ़ेगा
इस सफ़र के हमसफ़र होने मे आपकी दिलचस्पी का इंतेज़ार रहेगा
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